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ग़ज़ल
वो क्या इंसान है जो मुस्कुराए शादमाँ हो करमज़ा जब है हँसे वो सैद रंज-ए-बे-कराँ हो कर
क़सिमुल हक़ गयावी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल
फिर आप मुस्कुराए और फ़रमाया कि“बादशाहों को वह सफ़ाई कहाँ नसीब है कि वाक़िफ़ हों“
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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ग़ज़ल
पड़े जब वार ओछे मुस्कुराए ज़ख़्म बिस्मिल केउधर तेग़-ए-दूदम ने दाँत पीसे सख़्त-जानी पर
कौसर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
गिर्द-ए-बिलाल अगर धुले दिल की कली अगर खुलेबर्क़ से आँख क्यूँ जले रोने पे मुस्कुराए क्यूँ
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
वो भी अ'ता-ए-दोस्त है ये भी उसी की देन हैऐ'श में क़हक़हे लगा तैश में मुस्कुराए जा
सीमाब अकबराबादी
कलाम
रुख़ पे ज़ुल्फ़ें छोड़ कर वो मुस्कुराए इस तरहकुफ़्र तो फिर कुफ़्र है ईमाँ को ईमाँ कर दिया
माहिरुल क़ादरी
ग़ज़ल
ज़रा तुम ने नज़र फेरी कि जैसे कुछ न था दिल मेंज़रा तुम मुस्कुराए हो गया फिर इक जहाँ पैदा