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दोहा
बैराग का अंग - जैसो मोती ओस का तैसो ये संसार
जैसो मोती ओस का तैसो ये संसारबिनसि जाय छिन एक में 'दया' प्रभू उर धार
दया बाई
सूफ़ी शब्दावली
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
कोण हे अवधे सुखाचे संगति अंतकालीं मोती पाठमोरै
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-चुनरी(96) बाल नचे कपड़े फटे, मोती लिए उतार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-चुनरी (96) बाल नचे कपड़े फटे, मोती लिए उतार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
अरत दसहु दिसि मोती।कह गुलाल प्रभु के चरनन सों,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
दोहा इह द्वैही मोती सु गथ, तू नथ गर्व निसाक्त।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
अनंग अप्तंगनि अंग बिहारे।। मोती गिरे कुच पै कच खूटत,