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भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में

मीर मोहम्मद बेदार

भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में

मीर मोहम्मद बेदार

MORE BYमीर मोहम्मद बेदार

    भरे मोती हैं गोया तुझ दहन में

    कि दुर-रेज़ी तू करता है सुख़न में

    बहार-आरा वही है हर चमन में

    उसी की बू है नसरीन-ओ-समन में

    फिर ईधर उधर नाहक़ भटकता

    कि है वो जल्वा-गर तेरे ही मन में

    जहाँ वो है नहीं वाँ कुफ़्र इस्लाम

    अबस झगड़ा है शैख़ बरहमन में

    हुई जाती है पानी शर्म से शम्अ

    मगर वो माह आया अंजुमन में

    छुड़ाया था निपट मुश्किल से फिर आह

    दिल अटका उस की ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन में

    जुनूँ ने दस्त-कारी ऐसी भी की

    था गोया गरेबाँ पैरहन में

    मरा जाता है जिस ग़ैरत में दरिया

    गिरा किस का है दिल चाह-ए-ज़क़न में

    मगर परवाना जल कर हो गया ख़ाक

    कि रो-रो शम्अ जलती है लगन में

    जो सुनते थे दम-ए-ईसा का एजाज़

    सो देखा हम ने वो तेरे सुख़न में

    देखा उस परी-जल्वा को 'बेदार'

    रहा मशग़ूल तू याँ मा-ओ-मन में

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