आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मोह"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "मोह"
सलोक
उत्तमा उत्तम चिंतहि, मोह चिंतहि मद्धमा।।
उत्तमा उत्तम चिंतहि, मोह चिंतहि मद्धमा।।अधमा कायम चिंतहि पर चिंतहि अधमाधमा।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
पद
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने को
पहले मया-मोह को छोड़ के हर से मारे मने कोपेम की आग लगाए के ऐ 'दिलदार' जलावे तन को
कवि दिलदार
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ना बुलंदशहरी
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "मोह"
सलोक
अज्ञान- अन्धनि खे अभिलाष, मिटे न माया मोह जी।
अन्धनि खे अभिलाष, मिटे न माया मोह जी।भवनि भवसागर मे, खणी, तमअ जा तबाख।
सामी
सलोक
माया- माया मति खसे, वर्ती माणुहुनि जी मोह सॉ।
माया मति खसे, वर्ती माणुहुनि जी मोह सॉ।गुझी गाल्हि अन्दर जी, कहिखे कीन दसे।
सामी
अरिल्ल
अरिल छंद - माया मोह के साथ सदा नर सोइया
माया मोह के साथ सदा नर सोइयाआखिर ख़ाक निदान सत्त नहिं जिया
गुलाल साहब
पद
जउ हम बाँधे मोह फाँस हम प्रेम बंधनि तुम बाँधे
मोह पटलु सभु जगतु बिआपिउ भगत नहीं संतापाकहि 'रविदास' भगति इक बाढ़ी अब इह कासिउ कहीऐ
रैदास
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
कधी मोहतिया मोह न आवे 'औघट' कौने काजकुबरी ऐसी प्रीत करो कि मिलें कृष्ण-महराज
औघट शाह वारसी
दोहा
अलख लखे जब आप कों लखे न राखे मोह
अलख लखे जब आप कों लखे न राखे मोहलिखें पढ़ें कछु होत नहिं कहे तो लिख देवँ तोह
बरकतुल्लाह पेमी
ग़ज़ल
चित चोर लियो मन मोह लियो किरपा जो भई मो पे साजन कीभई मैं तो दीवानी ऐ री सखी छब देख के वा के नैनन की
मंज़ूर आरफ़ी
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
इसी तरह दरियापंथ में भी मोह का बड़ा ही अच्छा चित्रण प्रस्तुत हुआ है। दरिया साहब
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके,लोभ मोह अभिमाना।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
8. स्मरण 39. मोह, जड़ता, मूर्छा, स्वप्न 13