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ना'त-ओ-मनक़बत
मौला-ए-कुल हो ख़त्म-ए-पयम्बर तुम्हीं तो होहक़्क़ा कि दो-जहाँ के सरवर तुम्हीं तो हो
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुश्किल-कुशा शेर-ए-ख़ुदा मौला-'अली मौला-'अलीहैं जा-नशीन-ए-मुस्तफ़ा मौला-'अली मौला-'अली
अमीर बख़्श साबरी
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ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
ग़ज़ल
मख़्फ़ी तो हो गए हैं वो आ’लम-ए-हस्त-ओ-बूद सेकाश 'नसर' मैं देख लूँ मौला-ए-कुल को ख़्वाब में
नसर बल्ख़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा-ए-सब्र-ओ-रज़ा मख़्दूम-ए-कुल मख़्दूमियाँया 'अली अहमद 'अलाउद्दीन नूर-ए-चिश्तियाँ
हैरत शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हज़रत-ए-मौला ’अली हैं राज़-दार-ए-फ़ातिमाशब्बर-ओ-शब्बीर दोनों हैं क़रार-ए-फ़ातिमा
अमीर हमज़ा निज़ामी
कश्मीरी संत काव्य
सोयि कुल नो दोद सति संगिज़े
सोयि कुल नो दोद सति संगिज़े,सरपिनि ठूलन दीज़ि नो फाह ।
लल दद्द
बैत
ये वहम-ए-सरासर है जुदा जुज़्व है कुल से
ये वहम-ए-सरासर है जुदा जुज़्व है कुल सेक़तरा नहीं होता तो समंदर नहीं होता
अतहर नियाज़ी
पद
माघ - माघ कुल गुरु शील शोभा, बन्यो रूप सरूप रे ।
माघ कुल गुरु शील शोभा, बन्यो रूप सरूप रे ।भक्ति बिन भगवंत की नर, नीर बिन जिमि कूप रे ।।