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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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सूफ़ी कहानी
एक गीदड़ की शेख़ी जो रंग के नंदोले में गिर पड़ा था- दफ़्तर-ए-सेउम
वह्म की लज़्ज़त से तू अपना दिल इस तरह ख़ुश कर लेता है जैसे कोई शख़्स
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
बाग़-ए-'आलम को मिला रंग-ए-बहाराँ तुझ से
बज़्म-ए-हस्ती का हुआ हुस्न नुमायाँ तुझ से
सूफ़ी तबस्सुम
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है
किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है
किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
पी भी लूँ आँसू तो आख़िर रंग-ए-रुख़ को क्या करूँ
सोज़-ए-ग़म को क्या किसी उनवाँ छुपा सकता हूँ मैं
कामिल शत्तारी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता है
ज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल है
किसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-’अनादिल है