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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ख़ुशा ताबानी-ए-रू-ए-मु'ईनुद्दीन हसनजिस से फूटी हिन्द में इस्लाम की पहली करिन
अनवर साबरी
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
नुमायाँ कर दिया उस ने बहार-ए-रू-ए-ख़ंदाँ कोकि दी नग़्मे को मस्ती रंग कुछ सेहन-ए-गुलिस्ताँ को
असग़र गोंडवी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश थे यूँ असहाब रू-ए-मुस्तफ़ा को देख करमुस्तफ़ा जिस तरह अनवार-ए-ख़ुदा को देख कर
अमीर मीनाई
शे'र
जला हूँ आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मैं ऐ शोअ'ला-रू याँ तकचराग़-ए-ख़ाना मुझ को देख कर हर शाम जलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
उस सियह-बख़्त की रातें भी कोई रातें हैंख़्वाब-ए-राहत भी जिसे ख़्वाब-ए-परेशाँ हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
रू-ए-मुबीं है रू-ब-रू जल्वों में गुम नज़र भी हैअपने से बे-ख़बर भी हूँ अपनी मुझे ख़बर भी है
नख़्शब जार्चवि
फ़ारसी कलाम
हुस्न-ए-रू-ए-हर-परी-रूए ज़े हुस्न-ए-रू-ए-ऊस्तआब-ए-हुस्न-ए-दिलबरी हर-सू रवाँ अज़ जू-ए-ऊस्त
शम्स मग़रिबी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्तादआरिफ़ अज़ परतव-ए-मय दर तमअ'-ए-ख़ाम उफ़्ताद