अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्ताद
अ'क्स-ए-रू-ए-तु चु दर आईना-ए-जाम उफ़्ताद
आरिफ़ अज़ परतव-ए-मय दर तमअ'-ए-ख़ाम उफ़्ताद
प्याले के दर्पण में तेरे मुख का प्रतिबिम्ब पड़ गया। मदिरा हँस उठी। छानने वाले ने समझा कि वह उसकी प्रेमिका की हँसी है।
हुस्ने रु-ए-तू ब-यक जल्वा कि दर आईना कर्द
ईं हम:-नक़्श दर आइन:-ए-औहाम उफ़्ताद
बस वह उससे मिलने के लिये व्यर्थ के विचारों में पड़ गया। तेरे मुख ने दर्पण में जैसे ही अपनी शोभा दिखलाई वैसे ही उसके साथ ही साथ उसी दर्पण में संसार की सारी विचित्रताएं अंकित हो गईं।
चे कुनद कज़ पय-ए-दौराँ न रवद चूँ पुर-कार
हर कि दर दायर:-ए-गरर्दिश-ए-अय्याम उफ़्ताद
जो मनुष्य समय रूपी चक्कर में पड़ गया है वह उसके साथ चक्कर लगाने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकता है।
मन ज़े-मस्जिद ब-ख़राबात न ख़ुद उफ़्तादम
ईनम अज़ अहद-ए-अज़ल हासिल-ए-फ़रजाम उफ़्ताद
मैं स्वयं पूजागृह से मदिरागृह में नहीं चला आया हूँ। मैंने जो सृष्टि के प्रारंभ में प्रतिज्ञा की थी यह उसी का फल है।
आँ शुद ऐ ख़्वाजा कि दर सोमआ' बाज़म बीनी
कार-ए-मन बा-रुख़-ए-साक़ी-ओ-लब-ए-जाम उफ़्ताद
महाशय जी। वह समय व्यतीत हो गया जब आप मुझे पूजागृह में देखते थे। अब मैं प्रणय की पूजा करने लगा हूँ और मेरी पहुँच साथी के चेहरे और प्याले के ओठों तक हो गई है।
ईं हमः अक्स-ए-मय-ओ-नक़्श-ए-मुख़ालिफ़ कि नमूद
यक फ़रोग़-ए-रुख़-ए-साक़ी-अस्त कि दर जाम उफ़्ताद
मदिरा की यह झलक और उसमें एक दूसरे के विरुद्ध दिखलाई देने वाले चित्र साक़ी के ही दृष्टि फेरने के परिणाम हैं। जैसा कि प्याले के दर्पण में हुआ है।
ग़ैरत-ए-इश्क़ ज़बान-ए-हमः ख़ासाँ ब-बुरीद
अज़ कुजा सिर्र-ए-ग़मश दर दहन-ए-आ'म उफ़्ताद
प्रणय की शरमिन्दगी ने तमाम मुख्य मुख्य और बड़े बड़े आदमियों की ज़ुबान काट डाली थी। आश्चर्य यह होता है कि उसके प्रेम का रहस्य साधारण मनुष्यों को कैसे मा’लूम हुआ।
हर दमश बा मन-ए-दिल सोख़्तः लुत्फ़-ए-दिगर अस्त
ईं गदा बीं कि चे शाइस्त:-ए-इनआ'म उफ़्ताद
देखो तो यह दीन-हीन उसका पुरस्कार पाने के योग्य किस प्रकार हो गया है कि उसके साथ वह सदैव कोई न कोई दयाभाव प्रकट किया करता है।
मन कि दर ज़ुम्र:-ए-उश्शाक़ ब-रिंदी अलमम
तबल-ए-पिन्हाँ चे ज़नम तश्त-ए-मन अज़ बाम उफ़्ताद
उसकी प्रेम की तलवार के नीचे बड़ी ही प्रसन्नता से जाना चाहिये। उसके हाथ से जिसकी मृत्यु होती है वह एक बहुत ही उत्तम परिणाम पर पहुँचता है।
ज़ेर-ए-शम्शीर-ए-ग़मश रक़्स-कुनाँ बायद रफ़्त
काँ कि शुद कुश्त:-ए-ऊ नेक सर-अंजाम उफ़्ताद
मेरा दिल पहले तेरी ठुड्डी में आ कर अटक गया था। अब वहाँ से निकला तो तेरी काली लटों के फन्दे में फंस गया।शोक कुएँ से निकल कर वह जाल में जा पड़ा।
दर ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-तु आवेख़्त दिल अज़ चाह-ए-ज़नख़
आह कज़ चाह बरूँ आमद-ओ-दर दाम उफ़्ताद
ज्ञानी मनुष्य अपनी तीक्ष्ण और विचारपूर्ण दृष्टि के कारण अपने लक्ष्य पर पहुँच गया। परन्तु वह मनुष्य जिसकी दृष्टि ठीक न थी और जो एक को दो समझता था, वह बीच में ही रह गया।
पाक-बीं अज़ नज़र-ए-पाक ब-मक़्सूद रसीद
अहवल अज़ चश्म-ए-दो-बीं दर तमा-ए-ख़ाम उफ़्ताद
साधारणतः सभी साधु इस जमाव में योग देने वाले और प्रेमी हैं। परन्तु दुखिया हाफ़िज़ ही के सर बद-नामी का टीका लग गया है।
सूफि़याँ जुम्ल:-हरीफ़-अंद-ओ-नज़र-बाज़ वले
ज़ीं मियाँ 'हाफ़िज़'-ए-दिल-सोख़्त: बदनाम उफ़्ताद
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