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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दिल-ए-तू रक़्स-ए-बिस्मिल याद मी-दारद मगर 'अकबर'मरा ख़ुद कर्द बे-ख़ुद ईं चे बे-ताबानः मी-रक़्सद
शाह अकबर दानापूरी
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कलाम
यही देखा तमाशा जा के हम ने बज़्म-ए-जानाँ मेंकहीं लाश: तड़पता है किसी जा रक़्स-ए-बिस्मिल है
औघट शाह वारसी
ग़ज़ल
तमाशे देखते हैं आज-कल वो रक़्स-ए-बिस्मिल केसुने हम ने भी ग़ैरों से ये क़िस्से उन की महफ़िल के
औघट शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
नमी-दानम चे मंज़िल बूद शब जाए कि मन बूदमब-हर-सू रक़्स-ए-बिस्मिल बूद शब जाए कि मन बूदम
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
मिरा दम घुट के मक़्तल में तन-ए-बिस्मिल से निकलेगाफ़ुग़ाँ मुँह से न निकलेगी न नाला दिल से निकलेगा
हशम लखनवी
शे'र
अदा-ओ-नाज़-ए-क़ातिल हूँ कभी अंदाज़-ए-बिस्मिल हूँकहीं मैं ख़ंदः-ए-गुल हूँ कहीं सोज़-ए-अनादिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
अदा-ओ-नाज़-ए-क़ातिल हूँ कभी अंदाज़-ए-बिस्मिल हूँकहीं मैं ख़ंदा-ए-गुल हूँ कहीं सोज़-ए-अ’नादिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आशिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल सेअजल तो है ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से