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करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल के

औघट शाह वारसी

करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल के

औघट शाह वारसी

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    करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल के

    इरादा है कि रोएँ ईद के दिन भी गले मिल के

    तमाशे देखते हैं आज-कल वो रक़्स-ए-बिस्मिल के

    सुने हम ने भी ग़ैरों से ये क़िस्से उन की महफ़िल के

    कहानी में तसलसुल है मौज़ूँ है कोई क़िस्सा

    फ़साने भी परेशाँ हैं हमारे मुज़्तरिब दिल के

    करें क्या ग़ैर से तकरार वो ना-अहल-ओ-नादाँ है

    जो आक़िल हैं मुँह लगते नहीं बे-मग़्ज़-ओ-जाहिल के

    जगह रोने की है मदहोश पा कर बाग़-ए-आलम में

    मेरी ग़फ़लत पे ये ग़ुंचे भी अब हँसते हैं खिल खिल के

    परेशाँ क्यूँ हो दुखता हुआ दिल सैर-ए-गुलशन से

    कि अहल-ए-दर्द सुन सकते नहीं नाले अनादिल के

    ये बोला देख कर आईना मुझ से वो मेरा ख़ुद-बीं

    कहो ख़ुश-रू जहाँ में और हैं मेरे मुक़ाबिल के

    बुलाया पहले मक़्तल में किया है ज़ब्ह ख़ुद मुझ को

    क़यामत तक भूलूँगा ये एहसाँ अपने क़ातिल के

    तुझे मुश्किल-कुशा समझूँ क्यूँ कर मेरे 'वारिस'

    तेरे हाथों से हल होते हैं उक़्दे मेरी मुश्किल के

    ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम का सामना 'औघट' क्यूँ कर हो

    कि राह-ए-इश्क़ में ये मरहले हैं पहली मंज़िल के

    स्रोत :
    • पुस्तक : फ़ैज़ान-ए-वार्सी अल-मारूफ़ ज़म्ज़मः-ए-क़व्वाली (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : औघट शाह वार्सी
    • प्रकाशन : जय्यद बर्क़ी प्रेस, दिल्ली

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