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सवैया
जबते रितुराज समाज रच्यो तबते अवली अलिकी चहकी।
रसिया बन फूले फलाश करील गुलाब की बास महा महकी।बिरही जन के दिल दागिबे को यह आगि दशो दिशि तें दहकी।।
रसिया
गूजरी सूफ़ी काव्य
भौंरा लेवे फूल-रस रसिया लेवे बास
भौंरा लेवे फूल-रस रसिया लेवे बासमाली सींचे आस कर भौंरा खड़ा उदास
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
दोहराभौंरा लेवे फूल रस, रसिया लेबे बास।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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सूफ़ी लेख
आज रंग है !
या रसिया की निर्मल मूरत जोति रूप बनो रीऐसे रंगीले नबी से लागी ‘नियाज़’ की मन की रोरी
सुमन मिश्रा
कविता
बिन अ’मलाँ दोहागनि माए होवां नी
कै पह दुख अकेली रोवाँ आइ बनी सिर मेरेजा का कान तान सभ रसिया अवगन कई घनेरे
बाबा फ़रीद
होरी
कैसो रचो री रंग होरी अजमेर ख़्वाजा
या रसिया की निर्मल मूरत जोति रूप बनो रीऐसे रंगीले नबी से लागी 'नियाज़' की मन की रोरी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
होरी
ऐसी होरी कौन रचो री जा की धूम मची चहूँ ओरी
तरनी नारी सखियाँ सारी दीनी बहजोई क्यूँ सर बोरीवा रसिया लग रही है 'नियाज़' की चित्त और हित की डोरी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
सूफ़ी लेख
मीराबाई और वल्लभाचार्य
मीरा के प्रभु सांवरो रंग रसिया डोलै हो।। परंतु यदि गहरे पैठ कर देखा जाय तो जान