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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
इक इक वली रहीन-ए-करम ग़ौस-ए-पाक का
है सब की गर्दनों पे क़दम ग़ौस-ए-पाक का
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हारे ज़र्रे के परतव-ए-सितार-हा-ए-फ़लक
तुम्हारे फ़े'ल की नाक़िस मिसल ज़िया-ए-फ़लक
अहमद रज़ा ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दाम-हा गुस्तर्द ईं ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-शुमा
मुर्ग़-ए-दिल शुद सैद ऐ जानम ब-क़ुर्बान-ए-शुमा
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
कर रहा हूँ पेश-ए-ख़िदमत आप को गुल-हा-ए-होश
यूँ करम फ़रमाइए महफ़िल में फिर छा जाए होश