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सूफ़ी लेख
लखनऊ का सफ़रनामा
लखनऊ के बारे में बृज नारायण चकबस्त ने बहुत पहले कहा था :ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
रय्यान अबुलउलाई
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
गरचे दर इ'श्क़-ए-तू रुस्वा-ए-जहानम ऐ शोख़अज़ बराए तू शब-ओ-रोज़ ब-जानम ऐ शोख़
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रहमे कुन-ओ-मशो ज़े मन ऐ जान-ए-मन जुदातर्सम कि अज़ फ़िराक़ शुद जाँ ज़े तन जुदा
शाह अकबर दानापूरी
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
सूफ़ी-संतों ने हमें सिर्फ़ जीवन जीने की राह ही नहीं बतायी बल्कि अपने पीछे वह अपना
सुमन मिश्रा
बैत
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़र
बद-ओ-नेक रा बज़्ल कुन सीम-ओ-ज़रकि ईं कस्ब-ए-ख़ैरस्त-ओ-आँ दफ़'अ-ए-शर
सादी शीराज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
रसाई ’अक़्ल-ओ-दानाई की हर्फ़-ए-कुन-फ़काँ तक हैशु’ऊर-ओ-आगही ’इश्क़-ए-वज्ह-ए-ईं-ओ-आँ तक है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
जमाल-ए-सुब्ह-ए-अज़ल वज्ह-ए-कुन-फ़काँ तुम होहरीम-ए-साहिब-ए-फ़ितरत के राज़-दाँ तुम हो
कलीम उस्मानी
बैत
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेश
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेशकि मज़दूरे ख़ुशदिल कुनद कार-ए-बेश
सादी शीराज़ी
सूफ़ी कहावत
तारुफ़ कम कुन-ओ-बर मब्लग़ अफ़जाय
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