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रसाई ’अक़्ल-ओ-दानाई की हर्फ़-ए-कुन-फ़काँ तक है

तलहा रिज़वी बर्क़

रसाई ’अक़्ल-ओ-दानाई की हर्फ़-ए-कुन-फ़काँ तक है

तलहा रिज़वी बर्क़

MORE BYतलहा रिज़वी बर्क़

    रसाई ’अक़्ल-ओ-दानाई की हर्फ़-ए-कुन-फ़काँ तक है

    शु’ऊर-ओ-आगही ’इश्क़-ए-वज्ह-ए-ईं-ओ-आँ तक है

    हमारा नाला-ए-दिल हिज्र में उन के कहाँ तक है

    ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

    हदीस-ए-क़ुद्सी-ए-लौलाक आई शान में जिन की

    उन्हीं की जल्वा-फ़रमाई मकाँ से ला-मकाँ तक है

    बशीरी-ओ-नज़ीरी हैं सिफ़ात-ए-शाहिद-ए-मुर्सल

    कहे पर उन के मर मिटना हयात जावेदाँ तक है

    ये रब्ब-उल-’आलमीं का रहमतुल-लिल-'आलमीं कहना

    बताओ ख़िरद वालो हद-ए-रहमत कहाँ तक है

    गिरा दें आँख से जन्नत मदीना देखने वाले

    सहारा उन की चौखट का लिए बाग़-ए-जिनाँ तक है

    ग़ुबार-ए-कूचा-ए-जानाँ है सुर्मा-ए-चश्म-ए-हसरत का

    लगा लूँ क़ब्ल उस के ख़ाक-ए-मरक़द उस्तुख़्वाँ तक है

    गिरे उन के तसव्वुर में जो वक़्त नज़्अ' चंद आँसू

    ये मरवारीद भी शायद शिकस्त-ए-रीस्माँ तक है

    सुकून-ए-क़ल्ब-ए-ज़्तर है ख़याल उस काली कमली का

    सर-ए-महशर पनाह अपनी इसी इक साएबाँ तक है

    जरस हो या दर्रा जादा हो या मंज़िल कि रहरव

    हक़ीक़त कारवाँ की एक मीर-ए-कारवाँ तक है

    बहुत ही मुख़्तसर है क़िस्सा-ए-ता’अत फ़रिश्तों का

    बशर के दर्द-ए-दिल की दास्ताँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक है

    बुराक़-ए-ख़ुश-क़दम के सम में थी कुछ ख़ाक उस दर की

    उन्हीं ज़र्रों की ताबानी से रौशन कहकशाँ तक है

    लगी सुब्ह-ए-अज़ल मोहर-ए-यदुल्लाह फ़ौक़ा ऐदीहिम

    सनद ये दस्तगीर की यद-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक है

    सदा-ए-रब्बि-हब्ली उम्मती ज़ीना है जन्नत का

    ये लाली हम सिह कारों की शाह-ए-मुरसिलाँ तक है

    अबुल-क़ासिम मोहम्मद इब्न-ए-'अब्दुल्लाह सल्लल्लाहु

    फ़िदा उन पर मिरे माँ बाप मेरा ख़ानदाँ तक है

    फ़िराक़-ए-दोस्त में रोने से खिलती है कली दिल की

    ये सच मशहूर बाग़-ए-दहर से बाग़-ए-जिनाँ तक है

    हुए फ़ैज़ान-ए-'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा से चंद शे'र अपने

    कि 'आजिज़ इस ज़मीं में ‘ब्रक़’-सा मो’जिज़-बयाँ तक है

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