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कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
बैत
क्यूँ रूह को ख़राब करें जिस्म के लिए
क्यूँ रूह को ख़राब करें जिस्म के लिएजाना है ये लिबास यहीं उतार कर
ज़ाहिद नियाज़ी
सूफ़ी उद्धरण
इंसान दो दुनियाओं का मेल है, एक है "आलम-ए-ख़ल्क़" जिस से उसका बाहरी रूप जुड़ा है और दूसरा है "आलम-ए-अम्र" जिस से उस की रूह जुड़ी है।
शैख़ अहमद सरहिन्दी
फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
है दर्द-ओ-ग़म से दिल मलूल रूही फ़िदा या रसूलहर दम है लुत्फ़-ए-हक़ नुज़ूल रूही फ़िदा या रसूल