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सूफ़ी कहानी
हक़-तआ’ ला का इ’ज़राईल से ख़िताब कि तुझे किस पर रह्म आया - दफ़्तर-ए-शशुम
हक़-तआ’ला ने इ’ज़राईल से पूछा कि ऐ हमारी सुनाई पहुंचाने वाले सब मरने वालों में तुझे
रूमी
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ना'त-ओ-मनक़बत
मरीज़-ए-दिल की शिफ़ा ला-इलाहा इल-लल्लाहहर इक मरज़ की दवा ला-इलाहा इल-लल्लाह
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
काफी
माए ना मुड़दा इ'श्क़ दीवाना शहु नाल परीतां ला के
माए ना मुड़दा इ'श्क़ दीवाना शहु नाल परीतां ला केइ'श्क़ शर्हा दी लग्ग गई बाज़ी खेडां मैं दायो लगा के
बुल्ले शाह
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
वह आ’लिम के ए’तिराज़ के इंतिज़ार में इस तैयारी में खड़ा था कि उस को मुनासिब
लियोनिद सोलोवयेव
ना'त-ओ-मनक़बत
किताब-ए-दिल पे रक़म ला-इलाहा-इल्लल्लाहपयाम-ए-शाह-ए-उमम ला-इलाहा-इल्लल्लाह
मुमताज़ अली मुमताज़
नज़्म
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ख़ुदी का सिर्र-ए-निहाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाहख़ुदी है तेग़-ए-फ़साँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
ना'त-ओ-मनक़बत
शनासा-ए-रुमूज़-ए-ला-मकाँ हैं औलिया-अल्लाहख़ुदा के मुस्तफ़ा के तर्जुमाँ हैं औलिया-अल्लाह
हबीबुल्लाह साग़र वारसी
शे'र
क्या कहूँ क्या ला-मकाँ में उ’म्र 'मुज़्तर' काट दीबे-ख़ुदी ने जिस जगह रखा वहाँ रहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कहे मा'बूद ख़ुद अपनी ज़बाँ से जिस को ला-सानीभला फिर अबद से क्या हो सके उस की सना-ख़्वानी