आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "वियोग"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "वियोग"
कवित्त
प्यारे जी वियोग में तिहारे चित चेन गयो
प्यारे जी वियोग में तिहारे चित चेन गयो,भूलो खान पान सब मुरझाई छाई है।
हफ़ीजुल्लाह ख़ान
कविता
बाल वियोग परी मुरझाय हुती थित आलिन मे सिर नाय के
बाल वियोग परी मुरझाय हुती थित आलिन मे सिर नाय के ।मोहन के गुनगान अपार बखानत ही सखियाँ भल भाय के ।।
चंद्रकला बाई
अन्य परिणाम "वियोग"
सूफ़ी उद्धरण
जिस प्रकार मिलन और वियोग दोनों ही प्रियतम के वरदान हैं, उसी प्रकार दिन और रात दोनों ही सूर्य के रूप हैं।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
शुक्ल– आपके विरह-वर्णन के सम्बन्ध में भी मुझे आपत्ति रही हैं। परिस्थिति की गम्भीरता के अभाव
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
मधुबन! तुम कत रहत हरे? बिरह-वियोग श्यामसुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
स्थूल भोगों के वियोग की अग्नि।अपमान, निरादर और संकोच में डालने वाली अग्नि।
सूफ़ीनामा आर्काइव
छंद
मैं तो यह जानी हो कि लोकनाथ पति पाय,
एते पै विलक्षण ह्वै उत्तर गमन कीन्हों,कैसे कै मिटत ये वियोग विधि सिरजा ।।
कविरानी
सूफ़ी लेख
आलोचना- महाकवि बिहारीदास जी की जीवनी-मयाशंकर याज्ञिक
हिय कौं हुलास आली काहू सौं न भाखिए।केसौ केसौ राइ सों वियोग पलहू न होइ,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
नैनन नेह चुवौ कवि देव बुझावत बैन वियोग अंगीठीऐसी अनोखी अहोरी अहै कहौ क्यों न लगे मनमोहनै मीठी।।’
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूरसागर, डॉक्टर सत्येन्द्र
वात्सल्य संयोग वियोगसूरसागर का समस्त काव्य वात्सल्य तथा श्रृंगार-रस से युक्त है। इन रसों की क्रमशः