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बैत
शब-ए-फ़ुर्क़त में राहों को वो तकना
शब-ए-फ़ुर्क़त में राहों को वो तकनाहयात-ओ-मौत का इक सिलसिला है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त में याद उस बे-ख़बर की बार बार आईभुलाना हम ने भी चाहा मगर बे-इख़्तियार आई
हसरत मोहानी
कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपनाउसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना
मयकश अकबराबादी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त है मैं हूँ और मेरी चश्म-ए-गिर्यां हैतलातुम-ख़ेज़ ग़म में जोश-ए-पुर-अश्कों का तूफ़ाँ है
असीर मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त की बेदारी जो आगे थी सो अब भी हैये शब 'उश्शाक़ पर भारी जो आगे थी सो अब भी है
क़ैस गयावी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त कहें हम दास्तान-ए-दर्द-ओ-ग़म किस सेन कोई हम-नवा अपना न कोई राज़-दाँ अपना
अफ़सर नारवी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
वो हो के रहेगा जो मुक़द्दर में लिखा हैटलती नहीं टाले से बला-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त
सुमन मिश्रा
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
हैं मिरी ख़ामोशियाँ काफ़ी शब-ए-फ़ुर्क़त मुझेक्यूँ सितारे छेड़ देते हैं रुबाब-ए-ज़िंदगी
अज़मत हुसैन ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
इक जल्वे के मुश्ताक़ हैं सब आप के 'आशिक़पाला शब-ए-फ़ुर्क़त में बलाओं से पड़ा है