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शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपना

मयकश अकबराबादी

शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपना

मयकश अकबराबादी

MORE BYमयकश अकबराबादी

    शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपना

    उसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना

    मिटा गुलशन तो उठ कर ख़ाक-ए-गुल से हम कहाँ जाते

    जहाँ गुलशन था पहले अब वहीं पर है मज़ार अपना

    तिरे जल्वों में गुम हूँ या तिरी फ़ुर्क़त में मिट जाएँ

    ये हम समझे हुए हैं है फ़ना अंजाम-ए-कार अपना

    हुजूम-ए-यास में बे-गानगी का शिकवा किस से हो

    हम अपने दिल अपना जाँ अपनी यार अपना

    कहाँ अब वो सुरूर-ए-दौर-ए-अव्वल बज़्म-ए-हस्ती में

    जिसे कहते हैं दुनिया है वो 'मैकश' ख़ुमार अपना

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    शहबाज़ हुसैन नियाज़ी

    शहबाज़ हुसैन नियाज़ी

    स्रोत :
    • पुस्तक : Intikhab-e-Kalaam-e-Maikash (पृष्ठ 134)

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