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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
शेर भेड़िए और लोमड़ी का मिलकर शिकार को निकलना - दफ़्तर-ए-अव्वल
शेर, भेड़िया और लोमड़ी मिलकर शिकार की तलाश में पहाड़ों पहाड़ों निकल गए अगरचे शेर-ए-नर को
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़फ़लत का हम शिकार हैं सरकार-ए-दो-जहाँआ'सी हैं गुनाहगार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ
ख़्वाजा शायान हसन
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कश्मीरी संत काव्य
सिंहनी हंद शिकार पाज़ कव ज़ाने
सिंहनी हंद शिकार पाज़ कव ज़ाने,हांठ कव ज़ाने पोतरय दोद।
लल दद्द
शे'र
हवस जो दिल में गुज़रे है कहूँ क्या आह मैं तुम कोयही आता है जी में बन के बाम्हन आज तो यारो