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Sufinama

ग़फ़लत का हम शिकार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

ख़्वाजा शायान हसन

ग़फ़लत का हम शिकार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

ख़्वाजा शायान हसन

MORE BYख़्वाजा शायान हसन

    ग़फ़लत का हम शिकार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    आ'सी हैं गुनाहगार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    किस मुँह से चल के आएँगे महशर में रू-ब-रू

    नादिम हैं शर्मसार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    ख़ामोश है ज़बाँ मगर एहसास-ए-रंज-ओ-ग़म

    आँखों से आश्कार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    सदक़ा अ'ता करो हमें ज़हरा के लाल का

    ग़म दिल में बे-शुमार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    फ़रियाद को सुनो अ'ली असग़र के वास्ते

    हम लोग अश्क-बार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    नज़र-ए-करम से अपनी इन्हें साफ़ कीजिए

    दामन जो दाग़-दार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

    'शायान' को भी रौज़े का दीदार हो नसीब

    अरमान बे-क़रार हैं सरकार-ए-दो-जहाँ

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