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दोहा
पलकन में राखौ पियहि पलकन छाड़ौ संग
पलकन में राखौ पियहि पलकन छाड़ौ संगपुतरी सो तै होहि जिन डरपत अपने अंग
अब्दुर्रहमान
दोहा
'ख़ुसरव' रैन सुहाग की जागी पी के संग
'ख़ुसरव' रैन सुहाग की जागी पी के संगतन मेरो मन पीव को दोउ भए एक रंग
अमीर ख़ुसरौ
साखी
सतसंग का अंग - मन दीया कहुँ औऱही तन साधुन के संग
मन दीया कहुँ औऱही तन साधुन के संगकहै 'कबीर' कोरी गजी कैसे लागै रंग
कबीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
राग आधारित पद
उक़दा (समस्या)- क्यों नहिं खेलूँ तुझ संग मीता।
क्यों नहिं खेलूँ तुझ संग मीता।मुझ कारन तें ईता कीता।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
कलाम
मुर्शिद है शाहबाज़ इलाही रलया संग हबीबाँ हूतक़दीर इलाही छिक्कियां डोराँ मिलसी नाल नसीबाँ हू
सुल्तान बाहू
पद
निस-दिन खेलत रही सखियन संग मोहि बड़ा डर लागे
निस-दिन खेलत रही सखियन संग मोहि बड़ा डर लागेमोरे साहब की ऊँची अटरिया चढ़त में जियरा काँपे
कबीर
ग़ज़ल
कौन याँ बाज़ार-ए-ख़ूबी में तिरा हम-संग हैहुस्न के मीज़ाँ में तेरे महर-ओ-मह पासंग है
मीर मोहम्मद बेदार
पद
जो जानो हो छोड़ोगे सब संग संघाती देस और राज
जो जानो हो छोड़ोगे सब संग संघाती देस और राजदौलत-ए-दुनिया जमा करो हो महल उठाओ कह के काज