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सूफ़ी कहावत
सब्र तल्ख़ अस्त-ओ-लेकिन बर-ए-शीरीन दारद
धैर्य कड़वा होता है, लेकिन इसका फल मीठा होता है।
वाचिक परंपरा
रेख़्ता
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।सत्त नगरी, धर्म राजा जोग मारग निरमला।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी कहानी
एक मख़मूर तुर्क का गवय्ये को तलब करना- दफ़्तर-ए-शशुम
एक अ’जमी तुर्क सुब्ह -सवेरे बेदार हुआ। रात की शराब का ख़ुमार और बे-कैफ़ी की हालत
रूमी
दोहरा
तलब तेरी थीं मुड़सां नाहीं जब लग मतलब होंदा
तलब तेरी थीं मुड़सां नाहीं जब लग मतलब होंदाया तन नाल तुसाडे मिलसी या रूह टुरसी रोंदा
मियां मोहम्मद बख़्श
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का बे मेहनत हलाल रोज़ी तलब करना- दफ़्तर-ए-सेउम
एक शख़्स दाऊद अ’लैहिस-सलाम के ज़माने में रोज़ाना ये दुआ’ करता था कि ऐ ख़ुदा मुझे
रूमी
सूफ़ी कहावत
न सब्र दर दिल-ए-आशिक़, न आब दर गि़रबाल
प्रेमी के दिल में धैर्य वैसे ही नहीं हो सकता, जैसे छलनी में पानी को रखा नहीं जा सकता।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा-ए-सब्र-ओ-रज़ा मख़्दूम-ए-कुल मख़्दूमियाँया 'अली अहमद 'अलाउद्दीन नूर-ए-चिश्तियाँ