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Sufinama

एक मख़मूर तुर्क का गवय्ये को तलब करना- दफ़्तर-ए-शशुम

रूमी

एक मख़मूर तुर्क का गवय्ये को तलब करना- दफ़्तर-ए-शशुम

रूमी

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    रोचक तथ्य

    अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब

    एक अ’जमी तुर्क सुब्ह -सवेरे बेदार हुआ। रात की शराब का ख़ुमार और बे-कैफ़ी की हालत थी ।उसने एक गवय्ये को तलब किया। सूफ़ी की क़ुव्वत राग ही होती है। इन लोगों को गवय्या मतवाला कर देता है।

    गवय्ये ने उस मदहोश तुर्क पर राग के पर्दे में ये असरार खोलने शुरूअ’ कर दिए कि मैं नहीं जानता कि तू कहाँ है और मैं कहाँ? मैं नहीं जानता कि तू मुझे क्यों अपनी तरफ़ खींचता है? अ’ला-हाज़ा तमाम मज़ामीन ' मैं नहीं जानता' के बयान करता रहा और ‘नमी- दानम नमी-नदाम’ गाता रहा। जब गवय्ये की ‘नमी-दानम’ हद से ज़ियादा हुई तो वो तुर्क बे-ज़ार हो कर ग़ज़ब-आलूद हो गया और मारने के लिए गुर्ज़ उठा लिया। सोंचा कि इस वक़्त मुत्रिब को मार डालना दुरुस्त नहीं बल्कि पूछा कि तूने ये बे-मज़ा ‘नमी-दानम’ की क्या रट लगाई है। अब मैं तेरा सर तोड़ दूँगा। दलाल क्या तू कुछ नहीं जानता। अरे बे-हूदा वो सुना जो तू जानता है। ‘नमी-दानम नमी-दानम’ को ख़त्म कर। पूछता हूँ कि तू कहाँ का रहने वाला है और तू कहता है कि ना बल्ख़ का हूँ ना हिरात का, ना रुम का ना हिंद का, ना चीन का ना शाम का, ना इ’राक़ का ना बग़दाद का ना मूसिल का। इसी तरह नहीं नहीं को लंबा खींचता है और काम का जवाब नहीं देता। अगर मैं पूछूँ कि तूने सुब्ह को क्या खाया है और तू जवाब दे कि ना शराब ना कबाब ना तरकारी, ना पनीर ना प्याज़, ना दूध ना शक्कर ना शहद, अरे तूने जो कुछ खाया है पस उसी का नाम बता। जो नहीं खाया उस का क्या ज़िक्र करता है

    गवय्ये ने कहा कि मैंने तेरी नफ़ी की ताकि तू इस्बात को पा जाये। मैं इस साज़ को नफ़ी से शुरूअ’ करता हूँ जब तू मरेगा तो मौत अस्ल राज़ फ़ाश करेगी। तूने बहुतेरी जान खोदी मगर अब तक पर्दे में है क्योंकि अस्ल नुक्ता मरना था वही तुझसे ना हो सका। जब तक सीढ़ी पूरी ना हो उस वक़्त तक कोठे पर नहीं पहुंच सकता। और अगर सौ गज़ में से एक गज़ भी रस्सी कम हो और डोल में रस्सी बांध कर कुँवें में डाला जाये तो उस में पानी क्यूँकर आएगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 203)
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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