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ग़ज़ल
उस से वाक़िफ़ हैं सर-ए-सहन-ए-गुलिस्ताँ कितनेहम किसी गुल की तलब में हैं परेशाँ कितने
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी उद्धरण
तकलीफ़ आती है हमारे आ’माल की वजह से हमारे सहन करने की क्षमता के मुताबिक़ अल्लाह के हुक्म से हर तकलीफ़ एक पहचान है और ये एक बड़ी तकलीफ़ से बचाने के लिए आती है
हमारे सहन करने की क्षमता के मुताबिक़अल्लाह के हुक्म से
वासिफ़ अली वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
वैसे तो खिलाता है हर इक सहन-ए-चमन फूलमहफ़ूज़ ख़िज़ाँ है मिरे आक़ा का बदन फूल
डॉ. मंसूर फ़रिदी
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दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी इसरार इश्क़
मन्धिर में दिल के दीपक वेकला हैजुसी का सहन उसी सूँ निर्मला है
मोमिन दकनी
सूफ़ी शब्दावली
दोहरा
तन टुटदा मन तपदा माए
तन टुटदा मन तपदा माए ! मैनूं अक्खीं पीड़ वेखन दी ।इक पल सहन विछोड़ा भारी, केही पईआ बान मिलन दी ।
हाशिम शाह
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
गुल-ए-हुब्ब-ए-हुसैन-ओ-हम हसन दारद दिल-ए-पुर-ख़ूंबिया असग़र तमाशा कुन बहार-ए-सहन-ए-बाग़म रा
फ़ैज़ अली शाह
नज़्म
गुलशन-ए-हिंदुस्तान
गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डालीदेश हमारा सहन-ए-चमन है सहन-ए-चमन में घूम रहे हैं