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दर बयान-ए-उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती

नज़ीर अकबराबादी

दर बयान-ए-उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती

नज़ीर अकबराबादी

MORE BYनज़ीर अकबराबादी

    है ये मजमा' निको सरिश्ती का

    ज़िक्र किया याँ गुनह के ज़िश्ती का

    बहर है आरिफ़ों की कश्ती का

    फ़ख़्र है हर्फ़ सर-नविश्ती का

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    बाग़-ए-जन्नत है आज ये दरगाह

    फूल फूले हैं फ़ैज़ के दिल-ख़्वाह

    देख रिज़वाँ बहार याँ की वाह

    दिल में कहता दम-ब-दम वल्लाह

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    ये तजल्ली सीम-ओ-ज़र से है

    अब्र-ए-रहमत का नूर बरसे है

    हूर-ओ-ग़िल्माँ की रूह तरसे है

    और इशारः यही नज़र से है

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    सहन-ए-दरगह है बाग़ और बुस्तान

    और हैं ज़रदार सब गुल-ओ-रैहान

    जिस में सब फूल फूल हो शादाँ

    यही कहते हैं हर घड़ी हर आन

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    बस-कि ख़िल्क़त भरी है लालों-लाल

    घर-मकान है गुलों से माला-माल

    हुस्न राग और मशाइख़ के हाल

    भीड़ ग़ुल शोर ओर ये क़ाल-ओ-मक़ाल

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    खिल रहा है चमन जो फ़ैज़ भरा

    झरना गोया है हौज़-ए-जन्नत का

    क़ुदसियाँ देख वो बहिश्त-सरा

    सब पुकारें हैं यूँ अहाहाहा

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    कितने दरगह में फ़ैज़ उठाते हैं

    कितने झरने हैं जा नहाते हैं

    कितने नज़्र-ओ-नियाज़ लाते हैं

    कितने ख़ुश हो यही सुनाते हैं

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    उर्स दरगाह के जो देखा वाह

    और ही गुल खिले हैं ख़ातिर-ख़्वाह

    बुलबुलों की तरह से झुक कर आह

    सब यही कर रहे हैं कर के निगाह

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    है बहम दूर दूर का आलम

    सब्ज़-ओ-सुर्ख़-ओ-सफ़ैद-ओ-ज़र्द हम

    सब ख़ुशी हो के जों गुल शबनम

    देख सैरें ये कहते हैं हर-दम

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    भीड़ अम्बोह ख़लक़ की तकसीर

    बादशाह-ओ-गदा-ओ-अमीर-ओ-वज़ीर

    तिफ़्ल-ओ-पीर-ओ-जवान ग़रीब-ओ-फ़क़ीर

    पर सभों की ज़बाँ पे ये तक़रीर

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    कितने नज़रों से ज़ख़्मी होते हैं

    कितने दिल अपना मुफ़्त खोते हैं

    कितने उल्फ़त के तुख़्म बोते हैं

    कितने मोती खड़े पिरोते हैं

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    कितने वाँ सीम-तन भी फिरते हैं

    ग़ुंचा-लब गुल-बदन भी फिरते हैं

    शोख़ गुल-पैरहन भी फिरते हैं

    दिल-रुबा दिल-शिकन भी फिरते हैं

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

    आरिफ़-उल-हक़ मियाँ अली-अहमद

    उन की ख़ूबी 'नज़ीर' से बेहद

    सब पुकारे हैं ख़लक़ बेहद वाद

    रश्क है गुलशन-ए-बहिश्ती का

    उर्स हज़रत-'सलीम'-चिश्ती का

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