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दकनी सूफ़ी काव्य
जवाहर उल इसरारे अल्ला 1.5 जब ज्यों राखे तब त्यों रहिये
हब क्या कीजे बात घनेरीक्या कुछ रूप है मुँझ माँ सहेली
माशूक़ अल्लाह
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पद
आत्मशुद्धि - चूनर मेरी मैली भई, अब कापै जाऊं धुलान ।।
सखी सहेली सब जुड़ आईं, लगीं भेद बतलान।।राधास्वामी धुबिया भारी, प्रगटे आय जहान।।
शिवदयाल सिंह
बारहमासा
श्रावण- सावन आवन कहि गए, उमँग चले बहु नीर।
हित प्रेम डोरी बाध प्रीतम मिल सहेली झूलती।मैं अकेली झूलती गले लाग रो रो भूलती।।
खैरा शाह
राग आधारित पद
एसै प्रगट पीव संगि खेलिये हो, हां हो होइ मगन मन मांहि - राग काफी
सखी सहेली साथ ले हो, निसदिन रहूँ हजूर।।सेझ सनेही आइ विराजे, निरखूं में निसदिन नूर।।
महाराज अमरपुरुष जी
कवित्त
मेरो प्रान-सजीवन राधा ।
रंग महल संकेत जुगल कै टहलिन करत सहेली ।आज्ञा लहौं रहौ तहँ तट पर बोलत प्रेम पहेली ।।
सुंदर कुंवरि बाई
पद
मदनाष्टक - हिम ऋतु रतिधामा सेज लोटौं अकेली
हिम ऋतु रतिधामा सेज लोटौं अकेलीउठत बिरह ज्वाला क्यूँ सहौं री सहेली
रहीम
कुंडलिया
नैंन सखी अरहट भये पीये चले परदेस
नैंन सखी अरहट भये पीये चले परदेससकल सहेली उजली बिरहणि मैले भेस
वाजिद जी दादूपंथी
राग आधारित पद
राग सोरठा - अँखियाँ गुरू दरसन की प्यासी
भीतर बाहर संग सहेली बातन ही समझावैं'चरनदास' सुकदेव पियारे नैनन ना दरसावैं
चरनदास जी
गीत
मन-धन मुरली मोहन की सब सुध-बुध बिसराईसखी सहेली संग की खेली तुम्हीं प्रित पहचानी