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पद
तिंविर साँझ का गहिरा आवै छावै प्रेम मन-तन में
तिंविर साँझ का गहिरा आवै छावै प्रेम मन-तन मेंपच्छिम दिस कि खिड़की खोलो डूबहु प्रेम-गगन में
कबीर
ग़ज़ल
साँझ सवेरे नैन बिछा कर राह तकूँ मैं साजन कीराम ही जाने कब चमकेगी क़िस्मत मेरे आँगन की
तुफ़ैल हुश्यारपुरी
पद
प्रीतम हमारो प्यारो श्याम गिरिधारी हैं ।
तन मन वारूँ प्रान, जीवन मुरारी है ।सुमिरूँ मैं साँझ भोर, बार बार-हाथ जोर,
प्रताप बाला
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महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
साँझ परे हौं आइहौं स्याम बसन को आज।।267।।स्याम बार पग परत सुनु बाम कह्यौ मुसुकाइ।
रसलीन
झूलना
गुन झूलनाः उपदेस के अंग का
करि साहिब स्यौ नेह, बौरे बिनसि जैहै देह।दिखि परयौ भौ जल माँझ, सु तोहि सुनत भोर साँझ।।
वाजिद जी दादूपंथी
राग आधारित पद
एक अलाह के मैं कुरबानी । दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।
नैन के ओझल पलकन राखों, साँझ दिवस निसि भोरा हो ।।जब धन लै मनि बेचन चाहे, तीनि हाट टकटोरा हो ।
धरनीदास जी
पद
सुनु सुनु रे मन कहल मोर, चेत करहु घर जहाँ तोर ।।
आपु देखि पंथ धरु सबेर, का भुलि भुलि जग करु अबेर ।।साँझ समै जब घेरु अंधार, तब कैसे जइब उतरि पार ।।
शिवनारायण
राग आधारित पद
कहाँ से आयो छलीलिया प्यारे
नूर ज़ुहूर सब नूरा ही फैलासाथ फिर हो साँझ सकारे
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
दोहा
तिय ननदी पिय सासू सो कलह करी तत्काल
तिय ननदी पिय सासू सो कलह करी तत्कालसाँझ परत सूनो भवन बुझई दीप 'जमाल'
जमाल
भजन
हर रंग मा हर वारिस पिया
आपोई पूँजी आपोई भंडारा आपोई है रखवाराआपोई रात रात दिवस है आपोई आपोई साँझ-सकारा
नादिम शाह वारसी
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - माई म्हाँरी हरि न बूझी बात
पाट न खोल्या मुखाँ न बोल्या साँझ लग प्रभातअबोलना में अवध बीती काहे की कुसलात
मीराबाई
शबद
भेद का अंग - प्रान पाहुन मोर एरी मना
पतरी प्रेम परत है परस्पर सुखमन भरत कटोराज्ञान गुरु के बिंजन परोसहिं साँझ सरकार सबेरा
गुलाल साहब
पद
विरह के पद - माई म्हारी हरि जी न बूझी बात
पट न खोल्या मुखाँ न बोल्या साँझ भई प्रभातअबोलण जुग बीतण लागो तो काहे की कुसलात