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ना'त-ओ-मनक़बत
मय-ए-हुब्ब-ए-नबी से जिस का दिल सरशार होताहमेशा मोरिद-ए-लुत्फ़ शह-ए-अबरार होता है
शाह सालिम क़ादरी बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
नवेद-ए-ज़िंदगी आई जो तैबा से पयाम आयाकहा मैं ने मिरे आक़ा ग़ुलाम आया ग़ुलाम आया
शाह सालिम क़ादरी बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
नबी के चाहने वाले ख़ुदा की बात करते हैंख़ुदा वाले मोहम्मद मुस्तफ़ा की बात करते हैं
शाह सालिम क़ादरी बदायूँनी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ताज और तख़्त नहीं चाहिए हाशा मुझ कोदे मदीने की गदाई मिरे आक़ा मुझ को
शाह सालिम क़ादरी बदायूँनी
कलाम
साबित सिदक़ क़दम अगेरे ताईं रब्ब लुभीवे हूलूँ लूँ दे विच ज़िकर अल्लाह दा हर-दम पया पढीवे हू
सुल्तान बाहू
सूफ़ी उद्धरण
फ़क़ीर अल्लाह के वजूद को साबित करने की कोशिश नहीं करता, वो जानता है कि सूरज का सबूत देखने वाले की आँख ही दे सकती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश-ख़िसाल-ओ-ख़ुश-ख़याल-ओ-ख़ुश-ख़बर ख़ैरुल-बशरख़ुश-नज़्झ़ाद-ओ-ख़ुश-निहाद-ओ-ख़ुश-नज़र ख़ैरुल-बशर
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ातिह-ए-ख़ंदक़ हुनैन-ओ-बद्र-ओ-ख़ैबर हैं 'अलीइफ़्तिख़ार-ए-मस्जिद-ओ-मेहराब-ओ-मिंबर हैं 'अली