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अरिल्ल
बिरह सपीड़ा सास वहै उर करद रे।
बिरह सपीड़ा सास वहै उर करद रे।घाव गयो है फाटि बध्यो अति दरद रे।।
रामचरन
सलोक
फ़रीदा एक मूरति लोयना एक मूरति दुइ सास
फ़रीदा एक मूरति लोयना एक मूरति दुइ सासएक मूरति घट दोइ है दो मूरति इक आस
बाबा फ़रीद
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राग आधारित पद
होरी-काफी- नन्द के नन्द देखो होरी मचाई।
सास औ ननद रिसाई।।लपट झपट मोरी फारी अँगिया, ऐसी कीन्ही रुखाई।
मुश्तरी
राग आधारित पद
भैरवी यत- कजरवा देके हम पछतानी।
एक दिन अंखिया मोरी खजुवानी।औषध जानके काजर दीन्हा तिहु मे सास रिसानी।।
क़ाज़िम वा क़ायम
पद
कबीर नाम दे पींपा रैदास, भवसागर की काटी पासा
भाग बिना क्यों पाइये, सुमिरण सासों सास।।कल्याणदास जन यूं कहै, परम ज्योति प्रकास।।
महात्मा कल्याणदास जी
राग आधारित पद
ठुमरी- लंगर तोरा चतुर सुजान जान
लंगर तोरा चतुर सुजान जानमैं अपनी दधि बेचन निकसी, सास ननद की चोरी।
मुलतान आलम
दकनी सूफ़ी काव्य
पगदण्डी
लकलकाती, डोलती, गाती हुई जाती हूँ मैंमैं कुँआरी छोरियों की एक लम्बी सास हूँ
सुलैमान ख़तीब
छंद
टका करै कुलहूल टका मिरदङ्ग बजावै।
टका माय अरु बाप टका भैयन को भैया।टका सास अरु ससुर टका सिर लाड़ लड़ैया।।
बैताल
सोरठा
हाड़ गूद रग मांस, सो तो बिरहा लै गयो।
हाड़ गूद रग मांस, सो तो बिरहा लै गयो।'अहमद' रह्यो जु सास, ताही को सासौ परयो।।
अहमद
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
सास-ननँद को भई दहसत बहु ‘पेमी’ बात बनइएहोली होवे साखी-री चलो गुन गाइए गुन गाइए
सुमन मिश्रा
दोहरा
तांही रही कुचज्जी कमली
तांही रही कुचज्जी कमली, मैं जाय कुराहीं वत्ती ।क्युं कर कहे न सास असानूं, 'निज आवें औत निखत्ती' ।
हाशिम शाह
राग आधारित पद
होली-काफी- करावें कौन बहाना गवन हमरा नगिचाना।
तीजे डर मोहे सास ननद का चौथे पिया दैहे ताना।।प्रेम नगर की राह कठिन है वहां रंगरेज सियाना।
वहजन
पद
भर भर धर धर आवत गागर नागर नारि री कौन के रस मिस केरे।।
आई गई एसे कहां भये नंद के हेरे।।जो तूं अब सास ननद की कान करत तो पावै है कुल डरे।।