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दोहा
इकना आस मुड़न दी आहे, इक सीख कबाब चढ़ाइयां ।।
इकना आस मुड़न दी आहे, इक सीख कबाब चढ़ाइयां ।।बुल्लेशाह की वस्स ओनां, जो मार तकदीर फसाइयां ।।
बुल्ले शाह
दोहा
तन निर्मल कर बूझिए मन की अधिकै सीख
तन निर्मल कर बूझिए मन की अधिकै सीखवहोवा मअ'कुम के भेद सों फिर फिर आपै देख
बरकतुल्लाह पेमी
शबद
‘लाल’ जी घर कर तो हल करो सुनो हमारी सीख
‘लाल’ जी घर कर तो हल करो सुनो हमारी सीखदोजख वे जाएँगे घर वारी माँगे भीख
लालदास
कलाम
किसी से सीख ले बुलबुल सरापा दास्ताँ रहनाहै नंग-ए-'इश्क़ हाल-ए-दिल का मोहताज-ए-बयाँ रहना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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कवित्त
होरी खेलन की सत भारी ।
कहै प्रताप कुंवरि इमि खेलै सो नहिं आवै हारी ।।सीख सुन लीजै अनारी ।
प्रताप कुंवरी बाई
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
याकी सीख सुनै ब्रज को, रे! जाकी रहनि कहनि अनमिल अति, कहत समुझि अति थोरे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
तुर्की (फ़ारसी) में लिख लिख कर मैं ने हिंदवी को गायालै पए याई सीख पसारा
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
दोहरा
राम कहे सो मुख भला रे बिना राम सें बीख
राम कहे सो मुख भला रे बिना राम सें बीखअब न जानूँ राम ते जब काल लगावे सीख
तुकाराम
कविता
आज और कल- दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
होना तब तक शान्त कभी ना-होना-जब तक सुखी समाज।कल का मन में ध्यान न लाना सीख उसे सिखलाना आज।।