कहानी -23-ज़िन्दगी- गुलिस्तान-ए-सा’दी
नादान के लिए चुप रहने से बढ़कर और कोई चीज़ नहीं है, लेकिन कोई यह बात समझ ले तो वह ना-दान ही न रहे।
जिस तरह अन्दर गिरी न होने से अख़रोट हल्का हो जाता है, उसी तरह हुनर न होने से इन्सान की बातचीत उसे बे-क़द्र कर देती है।
एक मुर्ख एक गधे को बड़ी मेहनत से पढ़ाने की कोशिश करता था। एक अ’क़्लमन्द ने उससे कहा, ऐ नादान! तू यह क्या कर रहा है? इस बे-वक़ूफ़ी पर तुझे जो ताने सुनने को मिलेंगे उनका तो खौफ़ कर। चौपाये तुझसे बोलना नहीं सीख सकते। हाँ, तू चौपायों से चुप रहना सीख सकता है।”
जो सोच-समझकर जवाब नहीं देता उसका जवाब अक्सर ग़लत होता है।
या तो समझदार आदमियों की तरह बात को सँभाल कर कह और नहीं तो चौपायों की तरह ख़ामोश रह।
जब कोई व्यक्ति अपने से अधिक विद्वान् से इसलिए बहस करता है कि लोग उसे भी विद्वान् समझें तो नतीजा यह होता है कि लोग उसे मूर्ख समझने लगते है।
जब कोई बड़ा आदमी तुझसे बात करे, तो चाहे तू उससे ज़ियादा जानता हो, तो उसकी बात नहीं काटनी चाहिए।
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