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सूफ़ी कहानी
एक बूढ़े चंगी का गोरिस्तान में ख़ुदा के वास्ते चंग बजाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
तुमने सुना होगा कि हज़रत-ए-उ’मर के ज़माने में एक मुत्रिब चंग बजाने वाला बड़ा कमाल गुज़रा
रूमी
सूफ़ी कहावत
ग़व्वास गर अंदेशा कुनद काम-ए-नहंग। हरगिज़ न कुनंद दुर्र-ए-गरांमाया बा-चंग
जो ग़ोताख़ोर मगरमच्छ के चमकने वाले दांतों से डरता है, वह कभी भी मूल्यवान मोती नहीं पा सकेगा।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
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फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश-ख़िसाल-ओ-ख़ुश-ख़याल-ओ-ख़ुश-ख़बर ख़ैरुल-बशरख़ुश-नज़्झ़ाद-ओ-ख़ुश-निहाद-ओ-ख़ुश-नज़र ख़ैरुल-बशर
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़ातिह-ए-ख़ंदक़ हुनैन-ओ-बद्र-ओ-ख़ैबर हैं 'अलीइफ़्तिख़ार-ए-मस्जिद-ओ-मेहराब-ओ-मिंबर हैं 'अली
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़ुल्फ़ आशुफ़्तः-ओ-ख़ूए-कर्दः-ओ-ख़ंदँ-लब-ओ-मस्तपैरहन चाक-ओ-ग़ज़ल-ख़्वान-ओ-सुराही दर दस्त