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सूफ़ी लेख
सूर की सामाजिक सोच, डॉक्टर रमेश चन्द्र सिंह
तब, सूर की सामाजिक सोच तक पहुँचने का रास्ता क्या है? सच पूछा जाये तो सीधा
सूरदास : विविध संदर्भों में
रूबाई
टुक सोच के दिल में देख क्या कहते हैंबद कहते हैं या तुझ को भला कहते हैं
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
पद
ककहरा - सस्सा सोच करी मन माहिँ पिंड कहो कौन सँवारा
सस्सा सोच करी मन माहिँ पिंड कहो कौन सँवाराआदि अन्त का खेल किया किन बिधि बिधि सारा
तुलसी साहिब हाथरस वाले
क़िता'
जो हो बात किसी से कहो तुम सोच लो 'अकबर'ये नर्म है या गर्म है तासीर में क्या है
शाह अकबर दानापूरी
खंडकाव्य
यूसुफ़ जुलेखा (स्वप्न दर्शन खंड)
होय बिलंब सोच जानिमानहु। प्रेम न कबहुँ अँबिरथा जानहु।।। दोहरा ।।
शैख़ नज़ीर
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
खुसरू ने यह कही पहेली दिल में अपने सोच ज़री।।– छाता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
खुसरू ने यह कही पहेली दिल में अपने सोच ज़री।। -छाता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कविता
सांवलिया मन भायारे, बांके यार।
सोच विचार कहे 'यकरंग' पिया जिन ढूंढ़ा तिन पाया रे बांके यार।।
मुस्तफ़ा ख़ान यकरंग
कविता
गाना- ना जानो सइयां सो का होय बतियां।
यहै जिय सोच रहै दिन रतियां।वहां न कोऊ को कोऊ पूछत,
करीम बख़्श
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
जैसे- सीत उष्ण सुख दुख नहिं मानै, हानि भए कछु सोच न राँचै।