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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
सूफ़ी कहानी
मच्छर की फ़रियाद हज़रत-ए-सुलैमान के पास- दफ़्तर-ए-सेउम
घास और चमन के पत्तों से मच्छरों ने आकर हज़रत-ए-सुलैमान से फ़र्याद की कि ऐ सुलैमान
रूमी
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सूफ़ी उद्धरण
सच्चे इन्सान के लिए ये काइनात ऐ’न-ए-हक़ीक़त है और झूटे के लिए यही काइनात हिजाब-ए-हक़ीक़त है
सच्चे इन्सान के लिए ये काइनात ऐ’न-ए-हक़ीक़त है और झूटे के लिए यही काइनात हिजाब-ए-हक़ीक़त है।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
हिजाब-ए-ख़ास के पर्दे उठे हैं कैफ़-ओ-मस्ती मेंन जाने किस की हस्ती देखता हूँ अपनी हस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हिजाब-ए-चेहर:-ए-जाँ मी-शवद गु़बार-ए-तनमख़ुशा दमे कि अज़ीं चेहर: पर्द: बर-फ़िगनम
हाफ़िज़
कलाम
फ़राज़ वारसी
ग़ज़ल
वो जल्वे जो हिजाब-ए-नाज़ से महफ़िल में आते हैंमेरे दिल से निकलते हैं कि मेरे दिल में आते हैं
ज़हीन शाह ताजी
दोहरा
तुका बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दाम
'तुका' बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दामबलिहारी उस मुख की जिस्ते निकसे राम