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Sufinama

वो जल्वे जो हिजाब-ए-नाज़ से महफ़िल में आते हैं

ज़हीन शाह ताजी

वो जल्वे जो हिजाब-ए-नाज़ से महफ़िल में आते हैं

ज़हीन शाह ताजी

MORE BYज़हीन शाह ताजी

    वो जल्वे जो हिजाब-ए-नाज़ से महफ़िल में आते हैं

    मेरे दिल से निकलते हैं कि मेरे दिल में आते हैं

    फ़ना पहला अदब है शर्त-ए-अव्वल बज़्म-ए-जानाँ में

    जो अपने आप से गुज़रें वो इस महफ़िल में आते हैं

    खुली आँखों से 'आलम पर गुमान-ए-’आलम-ए-दिल है

    जब आँखें बंद करता हूँ नज़र वो दिल में आते हैं

    कोई सादा-दिली-ए-शौक़ को ये बात समझा दे

    पयाम-ए-हुस्न होते हैं जो अरमाँ दिल में आते हैं

    ख़ुदी के जौहर-ए-आसानी में इंसाँ पर नहीं खुलते

    हम अपने सामने खुल कर फ़क़त मुश्किल में आते हैं

    'ज़हीन' अल्लाह को मैं देखता हूँ हुस्न-ए-जानाँ में

    नज़र ख़ुर्शीद के जल्वे मह-ए-कामिल में आते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : आयात-ए-जमाल (पृष्ठ 137)

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