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ग़ज़ल
तू हुस्न-ए-मुजस्सम है तू इश्क़-ए-मुकम्मल हैपिन्हाँ तिरी आँखों में अफ़्साने हज़ारों हैं
अब्दुल हादी काविश
कलाम
मैं हुस्न-ए-मुजस्सम हूँ मैं गेसू-ए-बरहम हूँमैं फूल हूँ शबनम हूँ मैं जल्वः-ए-जानानः
वासिफ़ अली वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली के नाम की 'अज़्मत सिफ़ात-ए-इस्म-ए-आ’ज़म है'अली ही 'इल्म की तौक़ीर का हुस्न-ए-मुजस्सम है
ख़्वाजा शायान हसन
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मुजस्सम सूरत-ए-ग़म हूँ सरापा हसरत-ए-दिल हूँन मैं ज़िंदों में दाख़िल हूँ न मैं मुर्दों में शामिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुजस्सम सूरत-ए-ग़म हूँ सरापा हसरत-ए-दिल हूँन मैं ज़िंदों में दाख़िल हूँ न मैं मुर्दों में शामिल हूँ
कौसर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
हम को मुबारक आक़ा हमारा नूर-ए-मुजस्सम हक़ का प्यारावो मन राआ का जल्वा दिखाए सरवर-ए-'आलम ’आलम-आरा
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
फ़ारसी कलाम
दर हुस्न-ए-रुख़-ए-ख़ूबाँ पैदा हम: ऊ दीदमदर चश्म-ए-निको-रूयाँ ज़ेबा हम: ऊ दीदम