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ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-अख़्लाक़ पयम्बर का सरापा लिक्खूँया'नी क़ुरआन मुक़द्दस को मैं पूरा लिक्खूँ
ख़्वाजा शायान हसन
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ग़ज़ल
ऐ 'अक्स-ए-जमाल-ए-लम-यज़ली ऐ शम-ए'-तजल्ला क्या कहनाऐ नूर-ए-हिजाबात-ए-फ़ितरत ऐ हुस्न-ए-सरापा क्या कहना
मंज़ूर आरफ़ी
फ़ारसी कलाम
ऐ सरापा-ए-तू दिलकश ऐ अदाहा-ए-तू शोख़ज़ुल्फ़-ए-हिन्दू-ए-तू सरकश चश्म-ए-शह्ला-ए-तू शोख़
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
औसाफ़ तो सब ने पाए हैं पर हुस्न-ए-सरापा कोई नहींआदम से जनाब-ए-’ईसा तक सरकार के जैसा कोई नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
बैत
मुश्त-ए-ख़ाक-ए-मा सरापा फ़र्श-ए-तस्लीम अस्त व बस
मुश्त-ए-ख़ाक-ए-मा सरापा फ़र्श-ए-तस्लीम अस्त व बससज्दः-ए-मा रा जबीने-ओ-सरे दरकार नीस्त
बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
गुल-बदामाँ गुल सरापा गुल ही गुल है ख़ू-ए-दोस्तबल्कि वो गुल ही नहीं जिस में न हो ख़ुशबू-ए-दोस्त
महमूद आलम
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
फ़ारसी कलाम
दर हुस्न-ए-रुख़-ए-ख़ूबाँ पैदा हम: ऊ दीदमदर चश्म-ए-निको-रूयाँ ज़ेबा हम: ऊ दीदम