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ग़ज़ल
ज़हीन शाह ताजी
ना'त-ओ-मनक़बत
किसी को भी मोहब्बत हो किसी से भी मोहब्बत हो‘ज़हीन’-ए-यूसुफ़ी मर्कज़ है वो हुस्न-ओ-मोहब्बत का
ज़हीन शाह ताजी
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सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ूबी-ओ-हुस्न में बे-कैफ़-ओ-कम तूही तूही तूही तू हैराज़-ए-दिल-ए-'आशिक़ का महरम तूही तूही तूही तू है
अली हुसैन अशरफ़ी
ग़ज़ल
मोहब्बत में भी अब सूद-ओ-ज़ियाँ तक बात आ पहुँचीकहाँ की बात थी लेकिन कहाँ तक बात आ पहुँची
अब्दुल मन्नान तर्ज़ी
कलाम
माहिरउल क़ादरी
ना'त-ओ-मनक़बत
पैकर-ए-ख़लक़-ओ-मोहब्बत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’लीसाहब-ए-किरदार-ओ-सीरत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
है हुस्न-ए-अज़ल अहमद-ए-मुख़्तार में आयाऔर जिन्न-ओ-मलक में ही वही नूर समाया

