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ग़ज़ल
वो हू-हक़ अब कहाँ अफ़्सुर्दा है मय-ख़ाना बरसों सेनहीं क़ाएम हुई है मज्लिस रिंदाना बरसों से
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ये क्या है तिरे होते अफ़्सुर्दा है मय-ख़ानाहाँ ऐ दिल-ए-दीवाना इक ना'रा-ए-मस्ताना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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शे'र
मेहर-ए-ख़ूबाँ ख़ाना-अफ़रोज़-ए-दिल-अफ़सुर्दः हैशो'ला आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-चराग़-ए-मुर्दः है
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
मेहर-ए-ख़ूबाँ ख़ाना-अफ़रोज़-ए-दिल-अफ़सुर्दः हैशो'ला आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-चराग़-ए-मुर्दः है
मीर मोहम्मद बेदार
फ़ारसी कलाम
दिला दस्त-ए-तलब ब-कुशा ब-दरगाह-ए-शहंशाहेनिज़ामुद्दीन वल-मिल्लत अलैहे-रहमतुल्लाहे
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
जब 'इश्क़-ए-मोहम्मद ने सीने में ज़िया डालीतस्वीर-ए-सियह-कारी क़ुदरत ने मिटा डाली