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ना'त-ओ-मनक़बत
'इश्क़-ए-नबवी क्या है कौनैन की दौलत हैये जिस को मयस्सर है वो साहेब-ए-क़िस्मत है
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
न तख़्त-ओ-ताज की ख़्वाहिश न दौलत पर नज़र रखोनज़र के सामने बस उस्वा-ए-ख़ैर-उल-बशर रखौ
रईस अहमद नोमानी
सूफ़ी कहावत
चुँ यार अहल अस्त, कार सहल अस्त
जब हमारे साथी क्षमता रखने वाले होते हैं तो काम आसान हो जाता है।
वाचिक परंपरा
पद
काहे को मग़रूर फिरे है अपने दौलत धन से
काहे को मग़रूर फिरे है अपने दौलत धन सेकाहे को रखता है इस को ऐ मतहीन जतन से
कवि दिलदार
पद
साक़ी दौलत से तेरी हम पाएँ भर भर प्याले मुल
साक़ी दौलत से तेरी हम पाएँ भर भर प्याले मुलगिरह जो दिल में आन पड़ी हैं एक दफ़ा सब जावें खुल
कवि दिलदार
पद
दौलत पर मग़रूर न हो तू दुनिया है इक ख़्वाब ख़याल
दौलत पर मग़रूर न हो तू दुनिया है इक ख़्वाब ख़यालख़ुश होते हैं देखें जैसे ख़्वाब के अंदर दौलत माल
कवि दिलदार
पद
सई में दौलत हशमत की क्यूँ वक़्त को अपने खोता है
सई में दौलत हशमत की क्यूँ वक़्त को अपने खोता हैगर्दिश से अफ़्लाक की क्यूँ मुँह ढाँक के अपना रोता है