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दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला बारह बहार
अरे मन मुझे बोल तेरा ठिकानाकहाँ सू हुआ है यहाँ तेरा आना
शाह मियाँ तुराब दकनी
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साखी
बिरह का अंग - बिरह जलन्ती देखि कर साईं आये धाय
बिरह जलन्ती देखि कर साईं आये धायप्रेम बूँद से छिरकी के जलती लई बुझाय
कबीर
साखी
बिरह का अंग - बिरह भुवंगम पैठि कै किया कलेजे घाव
बिरह भुवंगम पैठि कै किया कलेजे घावबिरहिन अंग न मोड़िहै ज्यों भावै त्यों खाव
कबीर
साखी
बिरह का अंग - बिरह कमंडल कर लिये बै-रागी दो नैन
बिरह कमंडल कर लिये बै-रागी दो नैनमाँगैं दरस मधूकरी छके रहैं दिन रैन
कबीर
साखी
बिरह का अंग - बिरह भुवंगम तन डसा मंत्र न लागै कोय
बिरह भुवंगम तन डसा मंत्र न लागै कोयनाम बियोगी ना जियै जिये तो बाउर होय
कबीर
दोहा
बिरह रूप घन तम भयो अवधि आस उद्योत
बिरह रूप घन तम भयो अवधि आस उद्योतज्यों रहीम भादों निसा चमकि जात खद्योत
रहीम
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैराग
प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैरागसतगुरु बिन जावै नहीं मन मनसा का दाग़
कबीर
साखी
बिरह का अंग - बिरह जलन्ती मैं फिरों मो बिरहिनी को दुक्ख
बिरह जलन्ती मैं फिरों मो बिरहिनी को दुक्खछाँह न बैठों डरपती मत जलि उट्ठै रूक्ख
कबीर
साखी
बिरह का अंग - पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जाय
पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जायएक पीर है प्रीति की रही कलेजे छाय
कबीर
साखी
बिरह का अंग - चोट सतावै बिरह की सब तन जरजर होय
चोट सतावै बिरह की सब तन जरजर होयमारनहारा जानही कै जेहि लागी सोय
कबीर
कुंडलिया
तन रबाब मन मोरनां बिरह बजावै नित
तन रबाब मन मोरनां बिरह बजावै नितबारी फेरी बलि गई मिलहु पियारे मित