रिसाला बारह बहार
अरे मन मुझे बोल तेरा ठिकाना
कहाँ सू हुआ है यहाँ तेरा आना
न तेरा यहाँ खीश ना कोई बेगाना
यहाँ सूँ कहाँ फिर तेरा होगा जाना
अगर तू है परदेसी जोगी स्याना
अरे मन नको रे नको हो दीवाना
जिए लग तो जोरू बच्चे प्यार करते
मूए पर तो मुर्दा ककर जी में डरते
तेरे सात हरगिज़ नहीं कोई मरते
तुझे गाड़ माटी में सारे बिसरते
ये ऐसा है परपंच झूटा जमाना
अरे मन नको रे नको हो दीवाना
ये तन-मन सकल धन बदल जाने हारे
अपस कूँ तूँ माया में ना घालना रे
सुख आनंद सू उस को ना पालना रे
हरेक भाँत जीने के दिन टालना रे
जो हुशियार गुनवन्त चातुर है राणा
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
यहाँ चुप तू दो दिन मुसाफ़िर हो आया
बराबर है तुज कू जो अपना पराया
अबस जग के धंधे में तू शुद गँवाया
नहीं काम आयेगा अपना पराया
बिसर जा को अपना सो वो घर पुराना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
ये माटी के तन कू तू सिगारता की
उसे चुप खिलाता है के दूध ओर घी
निकल जाएगा तन सू जिस वक़्त पर जी
रहेगी वो आख़िर कू माटी की माटी
मिथा बूज कर चुप ये झूठा जमाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
बच्चे और जोरू न कुछ आएगा काम
के जब मौत का तुज कूँ आवेगा पैग़ाम
देवेगा तेरी तूच झड़ती सुब्ह-शाम
बिसर जा के धंधे मनीराम का नाम
चुपी आतमाराम कर-कर बहाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
रूपा और सोना तूँ एक बार देखत
अकड़ता है क्यूँ पहन ज़र-तार किसवत
सबा मार लातों से लेवेगी इज़्ज़त
बिसर जावेगा तब ये धन माल दौलत
ये दुनिया के माल कूँ ना पत्याना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
अछा देख चीरा किसी के तू सर पर
अपन कूँ नहीं कर को हसरत नको कर
नहीं काम आयेगा ये हिर्स आख़िर
बक़ा जान फ़ानी तेरा यू समझ पर
मुदामी समझ कर इस का ठिकाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
ये संसार सूँ हात धोना है आख़िर
सगेأसोदरे मिल को रोना है आख़र
क़बर में अकेला चे सोना है आख़िर
तुझे ख़ाक-दर-ख़ाक होना है आख़िर
........... .......... लेगा देखत बिछाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
अरे मन तुझे राम का घर कते हैं
भई पंच-भूत का तुझ कू जेवर कतें हैं
मुनव्वर सजा अर्श-ए-अकबर कते हैं
तेरा रुतवा सब में बुलंद-तर कते हैं
ये बस्ती सो दुनिया पो हो कर दिवाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
क़बर में तेरा कोई साती नहीं है
कठिन वक़्त का कोई सगाती नहीं है
ब-जुज़ राम के कोई साती नहीं है
के जिस दिल में इश्क़ ज़ाती नहीं है
अगर इस बला से अपन कूँ बचाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
'तुराब' से तुझे काम जब आ पड़ेगा
हो कर घाबरा तब निपट गिर पड़ेगा
तेरा तुज कू लेने का देना पड़ेगा
तू उस वक़्त पर बोल किस से लड़ेगा
जम्अ' कर को सब माल-धन का ख़ज़ाना
अरे मन नको रे नको हो दिवाना
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
घड़ी में जो तोला घड़ी में जो मासा
बेगाना करोगे चरण से थी आसा
न रहिए उपामा ना रहिए उदासा
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
अमीराँ सो बेहतर फ़कीराँ कलाते
समज फ़र्श मख़मल बगंबर बिछाते
मनका कोई खाए तो कोई मानिक खाते
हो कर ख़ाक-दर-ख़ाक शाही जगाते
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
जो बाँदा लँगोटा लगा ख़ाक तन कूँ
दिया छोड़ एक बार जब उन वतन कूँ
जला इश्क़ की बात में माल-ओ-धन कूँ
रखी कास ना पास हरगिज़ कफ़न कूँ
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
गदा माँगे खाता है टुकड़े घर-घर
लगा कर लँगोटा कलाता क़लंदर
ओड़े गूदड़ी होर बिछावे बगंवर
रखे फ़ख़्र दायम तू शाहा के ऊपर
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस से काँसा
फकीरो में क्या फ़िक्र दरकार है रे
हमेशा तेरा गर्म बाज़ार है रे
ओ रज़्ज़ाक़ मुतलक़ ख़रीदार है रे
हर-यक जा पो हादी सा दातार है रे
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
न किसी के भले बोलने की ख़ुश-हाली
न परवा-ए-तहसीन है ना डर व गाली
ना चाहें गर्म लिहाफ़ ना बज्म-ए-निहाली
न दिल में दर्द कुछ ग़म कहत साली
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
हज़ाराँ सूँ पैवंद किए गूदड़ी पर
रखा नाम उस का व बिस्तर
समझता है उस कूँ व अज़ किस्वत-ए-ज़र
न किस ठग का विश्वास ना चोर का डर
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
गदा कासः-ए-बंग जिस वक़्त चढ़ावे
मैं पुर्तगाली न ख़ातिर में लावे
बिछा कर बगंबर शहंशाह फलावे
ओ तकिया-नशीं कईं न जावे न आवे
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
करम सू गदा हात जिस का पकड़ते
बसर मुफ़्लिसी तख्त-ए-शाही ओ चड़ते
गदा किस सू हरगिज़ न लड़ते-झगड़ते
न दुनिया-ओ-दौलत कूँ देखत अकड़ते
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
जो दुनिया में साबित मुहिब्ब-ए-अली है
सदा उस के हक़ में फ़क़ीरी भली है
गदाई करे होर कलावे वली है
उसे जग की रुस्वाई में कामिली है
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया भीक का हात में जिस ने काँसा
दिया आज सो ओ ई चे फिर देवेगा कल
नको हो तूँ चुप कल कू धोका सू बेकल
समज कर सदा बोरिया फ़र्श मख़मल
'तुराब' का सुख़न ये सदा जान अफ़ज़ल
अरे मन उसे क्या है दुनिया का झाँसा
लिया हात में भीक का जिस ने काँसा
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