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शे'र
जिगर मुरादाबादी
कलाम
बर्ग-ए-गुल से क़तरा-ए-शबनम गिराती है सबाक्यूँ न लूटे दिल जो देखे दुर्र-ए-ग़लतान-ए-बहार
अमीर मीनाई
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुलबुले बर्ग-ए-गुले-ख़ुश-रंग दर मिंक़ार दाश्तवंदर आँ-बर्ग-ओ-नवा-ख़ुश-नालः-हा-ए-ज़ार दाश्त
हाफ़िज़
ग़ज़ल
चराग़-ए-जहाँ में ऐ गुल जो कुछ कि है सो तू हैशम्साद-ओ-सर्व-ए-सुंबुल जो कुछ कि है सो तू है
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ग़ज़ल
गुल-बदामाँ गुल सरापा गुल ही गुल है ख़ू-ए-दोस्तबल्कि वो गुल ही नहीं जिस में न हो ख़ुशबू-ए-दोस्त
महमूद आलम
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ