बुलबुले बर्ग-ए-गुले-ख़ुश-रंग दर मिंक़ार दाश्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
बुलबुले बर्ग-ए-गुले-ख़ुश-रंग दर मिंक़ार दाश्त
वंदर आँ-बर्ग-ओ-नवा-ख़ुश-नालः-हा-ए-ज़ार दाश्त
हेम वर्ण पाँखुरी फूल की लिए चोंच में बुलबुल एक
पँखुरी भीतर, और रूदन में प्रकट विरह का हाहाकार
गुफ़्तमश दर ऐ'न-ए-फ़स्ल ईं-नालः-ए-फ़र्याद चीस्त
गुफ़्त मा रा जल्वः-ए-मा'शूक़ दर ईं कार दाश्त
इस वसंत ऋतु में तू यह क्या करती है रोदन-फ़रियाद
उसने कहा, मुझे प्रिय का सुंदरता ने सौंपा यह भार
यार अगर न-नशिस्त बा मा नीस्त जा-ए-ए'तिराज़
पादशाह-ए-कामराँ बूद अज़ गदायाँ आ'र दाश्त
प्रियतम मेरे पास न बैठा तो इसमें है क्या ए’तराज़
लजा गया भिक्षुक से देखो, है जो सफलकाम सम्राट
आ'रफ़े कू सैर कर्द अंदर मक़ाम-ए-नीस्ती
मस्त शुद चूँ मस्तिए अज़ आ'लम-ए-असरार दाश्त
चक्कर काट चुका जब ज्ञानी इस मायावी दुनिया का
तब लवलीन हो गया वो पा कर रहस्य जग की मस्ती
दर नमी-गीरद नियाज़-ओ-इ'ज्ज़-ए-मा बा-हुस्न-ए-दोस्त
ख़ुर्रम आँ कज़ नाज़नीनाँ बख़्त-ए-बरख़ुरदार दाश्त
प्रिय के रूप-गर्व पर मेरे विनय दैन्य का असर नहीं
हैं प्रसन्न वे, सुंदरियों के प्रति प्रसन्न है जिनका भाग्य
ख़ेज़ ता बर किल्क-ए-आँ नक़्क़ाश जाँ-अफ़्शाँ कुनेम
कीं हमः नक़्श-ए-अ'जब दर गर्दिश-ए-पुर-कार दाश्त
उठ तू, प्राण निछावर कर उस चित्रकार की तूली पर
वर्तुल गति में आँक दिया है जिसने ऐसा चित्र-विचित्र
गर मुरीद-ए-राह-ए-इ'श्क़ी फ़िक्र-ए-बदनामी म-कुन
शैख़-ए-सनआँ’ ख़िर्क़ः रिहन-ए-ख़ानः-ए-ख़म्मार दाश्त
प्रेम पंथ का पथिक अगर तू तो मत डर बदनामी से
शैख़ सनआ’ रख गए बंधक चोले को मधुशाला में
वक़्त-ए-आँ-शीरीं क़लंदर ख़ुश कि दर अतवार-ए-सैर
ज़िक्र-ए-तस्बीह-ए-मलक दर हल्क़ः-ए-ज़ुन्नार दाश्त
उस सुकुमार संत का वो पर्यटन काल क्या सुंदर था
घिरा जनेऊ में भी वो सुरमाला की बातें करता
चश्म-ए-'हाफ़िज़' ज़ेर-ए-बाम-ए-क़स्र-ए-आँ-हूरे सरिश्त
शेवः-ए-जन्नात-ए-तजरी तहतहल-अनहार दाश्त
वो सुंदरी परी सी जिसके महल तले की नहरों में
जल तरंग स्वर्गीय भरेंगी ‘हाफ़िज़’की गीली आँखें
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