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साखी
प्रेम का अंग - प्रेम भाव इक चाहिये भेष अनेक बनाय
प्रेम भाव इक चाहिये भेष अनेक बनायभावे गृह में बास कर भावे बन में जाय
कबीर
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ना'त-ओ-मनक़बत
वही बेहोश है जो आप का मस्ताना नहींख़ुद वो दीवाना है जो आप का दीवाना नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
कुंडलिया
देख जगत की रीति से मन मैला हो जाय
बाम्हन पंडित भेष चलै ताही की लारै'तुलसी' चीन्है भेद को बकि बकि मरै बलाय
तुलसी साहिब हाथरस वाले
कुंडलिया
जो साहेब का लाल है सो पावैगा लाल
ब्रह्मा बिस्नु महेस करैं सब उन की पूजापलटू-गुरु भक्ती बिना भेष भया कंगाल
पलटू साहेब
पद
ककहरा - पप्पा पड़े जगत के माहिँ भक्ति सुपने नहिं भावै
पप्पा पड़े जगत के माहिँ भक्ति सुपने नहिं भावैबाम्हन पंडित भेष सबै पुनि दान करावै
तुलसी साहिब हाथरस वाले
दोहा
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेष
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेषसो अर्जुन बैराट घर रहे नारि के भेष
रहीम
दोहा
या तन खाख लगाय के खाखा करूँ तन लाल
या तन खाख लगाय के खाखा करूँ तन लालभेष अनेक बनाय कै भेटों पिया 'जमाल'
जमाल
पद
जोगी के पद - जोगिया रे कहियो रे अदेस
मुद्रा माला भेष लूँ रे खप्पड़ लेऊँ हाथजोगिन होए जग ढूँढ सूँ रे सांवलिया के साथ
मीराबाई
पद
ककहरा - डड्डा डगर सत का पंथ अंत कहो को लखै
डड्डा डगर सत का पंथ अंत कहो को लखैजग पंडित और भेष भूल भव में पकै
तुलसी साहिब हाथरस वाले
शबद
उपदेश का अंग - साधो केहि बिधि ध्यान लगावै
भेष जगत दृष्टि तें देखत औरे रचि के गावैचाहत नहीं लहत नहिं नामहिं तृस्ना बहुत बहावै
जगजीवन साहेब
अरिल्ल
संत मता है सार और सब जाल पसारा
संत मता है सार और सब जाल पसारापरम हंस जग भेष बहे सब मन की लारा