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दोहा
जब जब मेरे चित्त चढ़ै, प्रीतम प्यारे लाल
जब जब मेरे चित्त चढ़ै, प्रीतम प्यारे लालउर तीखे करवत ज्यूँ बेधत हियो 'जमाल'
जमाल
शबद
सिर पर चक्कर चढा काल का आन सधी अब वही घड़ी
सिर पर चक्कर चढा काल का आन सधी अब वही घड़ीयम के दूत तेरे घट को रोकें दम तेरै पै भीड़ पड़ी
नेकीराम
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - झमकी चढ़ि जाउँ अटरिया री
झमकी चढ़ि जाउँ अटरिया री झमकी चढ़ि जाउँ अटरिया रीऐ सखि पूंछौं साईँ केहिं अनुहरिया री
जगजीवन साहेब
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शबद
प्रेम का अंग - हुआ है मस्त मंसूरा चढ़ा सूली न छोड़ा हक़
हुआ है मस्त मंसूरा चढ़ा सूली न छोड़ा हक़पुकारा इश्क़-बाज़ों को अहै मरना यही बर-हक़
दूलनदास जी
ग़ज़ल
कभी चार फूल चढ़ा दिए जो किसी ने मेरे मज़ार परतो हज़ारों चर्ख़ से बिजलियाँ गिरीं एक मुश्त-ए-ग़ुबार पर
अफ़क़र मोहानी
शबद
चढी जवानी खूब कमाया दिन में धन्धा बहुता करा
चढी जवानी खूब कमाया दिन में धन्धा बहुता करासबका पालन पोषण कीना उनका उदर तै ने ही भरा
नेकीराम
दोहा
लालन मैन तुरंग चढ़ि चलिबो पावक माँहिं
लालन मैन तुरंग चढ़ि चलिबो पावक माँहिंप्रेम-पंथ ऐसो कठिन सब कोउ निबहत नाहिं
रहीम
कुंडलिया
गंगा पाछे को बही मछरी चढ़ी पहार
गंगा पाछे को बही मछरी चढ़ी पहारमछरी चढ़ी पहार चूल्ह में फंदा लाया
पलटू साहेब
शबद
उपदेश का अंग - चलो चढ़ो मन यार महल अपने
चलो चढ़ो मन यार महल अपनेचलो चढ़ो मन यार महल अपने
दूलनदास जी
सोरठा
'रहिमन' बहरी बाज गगन चढ़े फिर क्यूँ तिरै
'रहिमन' बहरी बाज गगन चढ़े फिर क्यूँ तिरैपेट अधम के काज फेरि आय बंधन परै
रहीम
ढकोसला
भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए
भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाएउतर आ मेरे राँड की कही हूपज़ न फट जाए
अमीर ख़ुसरौ
ढकोसला
भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए
भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाएदुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन
अमीर ख़ुसरौ
अष्टपदी
ज्ञान मति वर्णन - तन मथने को जतन कहूँ अब जानिये
रोके त्रिकुटी माहीं आनि कै बायु कूँषट चक्कर कूँ छेदि चढ़ै जब धाय कूँ