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ग़ज़ल
ऐ दोस्तो चश्म को खोल ज़रा देखो कैसा है माह-ए-लक़ाबे-शक है मोहम्मद नूर-ए-ख़ुदा शुबहा न कर इस में असला
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
फ़ारसी कलाम
दिल-बर-ए-मस्तान: रा चश्म ब-रु-ए-कि बूदबाद: ज़े दस्त-ए-कि ख़ुर्द मस्त ब-बू-ए-कि बूद
अहमद जाम
फ़ारसी कलाम
ग़ैरत अज़ चश्म बरम रु-ए-तू दीदन न-देहमगोश रा नीज़ हदीस-ए-तू शुनीदन न-देहम
बू अली शाह क़लन्दर
फ़ारसी कलाम
हाशा लिल्लाह कज़ रुख़त चश्म अफ़्गनम सू-ए-दिगरख़ुश नमी-आयद ब-जुज़ रू-ए-तूअम रू-ए-दिगर
नूरुद्दीन हिलाली
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मन अज़ कुजा पंद अज़ कुजा बाद: ब-गर्दां साक़ियाऐ जाम-ए-जाँ अफ़ज़ा-ए-रा बर ज़ेर-ए-जान-ए-साक़िया
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
साक़िया बादः देह इमरोज़ कि जानाँ ईं जास्तसर-ए-गुलज़ार न-दारेम कि बुस्ताँ ईं जास्त
अमीर ख़ुसरौ
कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी कलाम
मन न-दानम बाद:-अम या बाद: रा पैमान:अमआ'शिक़-ए-शोरीद:-अम या इश्क़-बा-जानान:अम
शाह वलीउल्लाह देहलवी
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तुर्क-ए-सफ़ेद-रूए- व सियह-चश्म-ओ-लालः-रंगमिस्लत नज़ाद मादर-ए-अय्याम शोख़-ओ-शंग