सवाद-ए-दीदः-ए-मन शुद ज़े-आब-ए-चश्म बयाज़
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
सवाद-ए-दीदः-ए-मन शुद ज़े-आब-ए-चश्म बयाज़
हुनूज़ चंद निगारा ज़े-मन कुनी ए'राज़
मेरी आँखों कि श्यामलता आँसू से हो गई सफ़ेद
कब तक और करोगी यूँ तुम प्रियह हमारी अवहेला
बिया किनार ब-गीरीम व आश्ती ब-कुनेम
गुज़श्तः याद चे आरी मज़ा मज़ा मामाज़
आओ तो मेरे क़रीब, हम मिल कर झगड़े सुलझा लें
बीत गई सो गई, याद क्या करती है तू बीती बात
चे तेज़ीस्त ब-मिज़्गान-ए-चश्म-ए-ऊ यारब
बुरीद जामः-ए-तक़्वा ब-ग़मज़: चूँ मिक़राज़
भगवन उसकी आँखों की पलकों का कैसा तीक्ष्ण कटाक्ष
कतर दिया जिसने कैंची सा मेरे संयम का चोला
चू अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ओ-रुख़त दरमियान-ए-चश्म उफ़्ताद
गिरफ़्त दीदः-ए-मर्दुम अज़ाँ सवाद-ओ-बयाज़
तेरे केश और मुख का जब नयनों में प्रतिबिम्ब पड़ा
श्वेत-श्यामता उससे पाई तब मनुष्य की आँखों ने
ग़ज़ल ब-क़ाफ़ियः-ए-'ज़ाद' नायद ऐ 'हाफ़िज़'
मगर हम अज़ तो ब-बायद तबीअत-ए-फ़य्याज़
मुश्किल बहुत ‘ज़ाद’ की तुक है इससे ग़ज़ल नहीं बनती
लेकिन शायद तुझसे ‘हाफ़िज़’ होवे भावों का विस्तार
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