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शे'र
जैसी चाहे कोशिशें कर वाइ'ज़-ए-बातिन-ख़राबतेरे रहने को तो जन्नत में मकाँ मिलता नहीं
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
लैल-ओ-नहार चाहे अगर ख़ूब गुज़रे 'इ’श्क़'कर विर्द उस के नाम को तू सुब्ह-ओ-शाम का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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शे'र
पुरनम इलाहाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
बसर हो ज़िंदगी 'इज़्ज़त में तेरी चाहे ज़िल्लत मेंतिरे क़ब्ज़े में बंदे कुछ नहीं है दस्त-ए-क़ुदरत में
उवेस रज़ा अम्बर
राग आधारित पद
छा रही ऊदी घटा जियरा मोरा घबराए है
छा रही ऊदी घटा जियरा मोरा घबराए हैसुन री कोयल बावरी तू क्यूँ मल्हारें गाए है
मुज़्तर ख़ैराबादी
साखी
प्रेम का अंग - पीया जाहै प्रेम रस राखा चाहै मान
पीया जाहै प्रेम रस राखा चाहै मानएक म्यान में दो खड़ग देखा सुना न कान
कबीर
शे'र
अब्र-ए-दूद-ए-दिल जो घर को छाए रहता है मेरेरहती है फ़ुर्क़त की शब बाहर ही बाहर चाँदनी
आसी गाज़ीपुरी
ग़ज़ल
मैं किस से कहौं ऐ दिल बस तुझ को पिया चाहेसब कुछ मैं करूँ अर्पण जो मुझ को पिया चाहे
अब्दुल हादी काविश
सूफ़ी कहावत
हर कुजा तू बा मनी, मन ख़ुशदिलम, वर बूवद दर क़ा'र चाही मंज़िलम।
मुझे खुशी है जहाँ तू मेरे साथ है, चाहे मुझे कुएँ की गहराई में रहना पड़े।
वाचिक परंपरा
शे'र
सई’द शहीदी
ग़ज़ल
अब्र-ए-दूद-ए-दिल जो घर को छाए रहता है मेरेरहती है फ़ुर्क़त की शब बाहर ही बाहर चाँदनी